अतुल्य भारत 24×7/ब्यूरो
विश्व की सबसे प्राचीन जनजातियों में से एक व समृद्ध संस्कृति के धनी गद्दी समुदाय के बारे में अक्सर आम धारणा रही है की गद्दी अनपढ़ थे लेकिन वास्तव में भारत के अति दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में जीवन बसर करने वाली गद्दी जनजाति अनपढ़ होने की बजाए हर विषयों की समझ रखने वाले ज्ञाता थे।
मेट्रो हॉर्न सोसायटी धर्मकोट भागसुनाग धर्मशाला के अध्यक्ष नरेंद्र सिंह ने गद्दी समुदाय को लेकर कांगड़ा चंबा सहित विभिन्न पहाड़ी क्षेत्रों में रिसर्च किया है जिसमें उन्होंने अपने अध्यन के आधार पर यह दावा किया है कि गद्दी जनजाति को अनपढ़ कहना कदापि उचित नहीं है।
उन्होंने कहा कि हजारों वर्ष पूर्व से ही गद्दी समुदाय एक सभ्य जनजाति थी जो की अपनी परंपराओं,रीति रिवाजों,संस्कारों, मौसम विज्ञान, स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में निवास स्थान बनाने व रास्तों के निर्माण में सक्षम इंजीनियर मंत्रोचारण व भौगोलिक स्थितियों की खासी समझ रखते थे।
गद्दी समुदाय ने अन्य वर्गो को भी सभ्यता का पाठ पढ़ाया है इतना ही नहीं भारत देश में कई विपदाओं व बाहरी आक्रमणों से सनातन धर्म को हुए बड़े नुकसान के बाबजूद गद्दी जनजाति अति दुर्गम पहाड़ों में सनातन धर्म की भी सच्ची रक्षक बनी रही।
इसके साथ ही बाहरी आक्रमणकारियों व ब्रिटिश कालीन समय से भी पहले दुर्गम पहाड़ी रास्तों, दर्रो को खोजने का कार्य गद्दी जनजाति ने ही किया है। जिसमें भारत के नॉर्थ इंडिया के पहाड़ी रीजन के धौलाधार पीर पंजाल सहित अन्य पर्वतों के दररों को खोजने व पहाड़ी में रास्तों के निर्माण का कार्य भी गद्दी समुदाय ने ही किया है।
हालांकि इसमें ब्रिटिश हुकूमत ने भारत में अपने शासनकाल के दौरान गद्दी जनजाति की ओर से खोजे गए पहाड़ों, पहाड़ी रास्तों दर्रों की खोज करने के नाम अपने नाम जोड़ लिए हैं।
हालांकि उन्होंने कहा की यह पूरी तरह से इतिहास के साथ अंग्रेजों ने छेड़ छाड़ की है और भारतीय गद्दी समुदाय की खोज को अपना नाम दिया है। जिसका भारत को कड़ा विरोध करना चाहिए।
इसके अलावा गदियाली संस्कृति को भविष्य की पीढ़ियों तक सहेज कर रखने का भी लोग गीत संगीत व लोक कथाओं के साथ बखूबी वर्णन किया गया है।